Monday 20 March 2017

तीन तलाक | kavita on teen talak | hindi kavita on teen talak

तीन तलाक

मेरे इस्कूल जाते वक्त
तीन तीन घंटे, तेरा मेरे दिदार का तकल्लुफ
दिखते ही मेरे,
तेरे चेहरे पर रंगत आ जाना
मेरे बुर्कानशीं होकर आने पर
वो तेरी मुस्कान का बेवा हो जाना
मेरे इस्कूल ना जाने कि सूरते हाल में
तेरा गली में साइकिल की घंटियां बजाना सुनकर
खो गई थी मैं,
और तेरी जुस्तजू में
दे दिया था मैंने मेरे अपनों की यादों को तलाक
कबूल है, कबूल है, कबूल है......

वो जादुई तीन शब्द
और
तेरा करके मूझे घूंघट से बेपर्दा,
करना मुझसे पलकें उठाने की गुजारिश
वो मुखङा दिखाने की आरजू-ओ-मिन्नत
लेटकर मेरी गोद में
मेरे झुमके को नजाकत से छुना
याद है मुझे, तेरा मेरे कंगन ओ चुङियों से खेलना
और तेरी मोहब्बत में
दे दिया था मैंने अपने खुद के वजूद को तलाक
तेरे मेरे आकाश में
तीन तीन सितारों का उगना
तेरे ना होने पर इनका तेरी खातिर मासूम इंतजार
और तेरे आने पर
अपनी अम्मी के पीछे छुप जाना
हल्की सी बुखार की तपन पर तेरा रात रात जागना
और
तपन का तेरी आंखों की लाली बन उतरना
तेरा इन सोते हुए फूलों को चूमना
और तेरे इतने रूहानी खयालात में
दे दिया था मैंने अपनी हर फिक्र को तलाक
श्वेत धवल जिंदगी में
तूने मेरे और मैंने तेरे, भर दिये थे तीनों रंग
लालीमय सुबह, सुनहरा दिन और केसरिया शाम
कितना गुलनशीं था सबकुछ
फूल पुरजोर महकते थे,
बय़ार पुरशूकन गाती थी,
सितारों कि वो टिमटिम अठखेलियां
और
मेरा हाथ थामें तूं मेरा पूरा जहां
और तेरे हंसी आगोश में
दे दिया था मैंने अपने हर रंजो-गम को तलाक
पर तीन रंगों से समयचक्र पूरा तो नहीं होता
तो मैं कैसे पूरी हो जाती
तलाक... तलाक... तलाक... तीन तलाक....

फिर ये तीन शब्द भी आये इक रोज
रात की काली रंगत से मेरा परिचय कराने
क्योंकि तूं मर्द था
और तूझ पर मौजूं थे चार निकाह
और, मैंने कर दिया था इन्कार
बांटने को मेरे तीन रंगों को किसी और के साथ
और तेरी जवानी की झाल में
दे दिया तूंने मेरी हसरतों को तीन तलाक
तीन शब्दों में तूने, तार तार कर डाला,
हर रूहानी रिश्ता, हर रूहानी याद, हर रूहानी वादा
बङा याद आता है....... तूं हर वक्त.....

रो पङते हैं बच्चे रातों को अक्सर
और मैं अकेली इन्हें चुप भी नहीं करा पाती
तेरे बिन सुबहो अब चूभती है मूझे
क्या करूं, कैसे करूं, कहां जाऊं, कहां मरूं
आजा इक आखिरी बार, देख तो जा
कि तूंने बस यूं ही बोल कर तीन तलाक
किस तरह से किया है,
इक खिलखिलाते ताजमहल को खाक
माना अब फूल मेरे जीवन में ना महकेंगें,
माना अब पुरवा मेरे लिए ना गाएगी,
अब सितारे मेरी हसरतों को पूरा करने को ना टूटेंगें
पर फिर भी
खुदा से ये दुआ है मेरी
कि, रखे वो तुझे मेरी बद्दुआओं से महफूज
परवरदिगार बख्शे तूझ तक पहुंचने से
मेरे बच्चों के आंसुओं की आग
तेरी खातिर अब से पहले भी
मैंने खुद को दिये हैं बहुत से तलाक
जा मैं भी करती हूं आजाद तूझे
तलाक... तलाक... तलाक... तीन तलाक....

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