Sunday 3 April 2016

फ़िक्र

फ़िक्र

तुझे ही मेरी फ़िक्र है वरना ,
वो देख !,
सारा शहर मोहब्बत को मुझसे और
मुझको महब्बत से जानता है !
तू खुद नाप ले मेरी मुहब्बत का पैमाना !
मेरे शहर के हर मयखाने का प्याला ,
तेरा नाम जानता है !
अब तो मेरी रूह भी वाकिफ है तेरी वफाई से ,
पर ये दिल मेरे अंदर होके भी मेरी बात मानता है !
मैं भी चाहता हूँ तुझे भुला दू तेरी ही तरह !
पर क्या करूँ ,
कुछ इस कदर बस गयी है तू मुझमे ,
की मेरा रोम रोम मुझे अब तुझसे पहचानता है !
सिर्फ एक तू ही है जिसे मेरा प्यार दिखा
वरना सारा शहर मुझे तेरे आशिक़ के नाम से जानता है !
तेरे सिवा मेरे पास कुछ था खोने को ,
पर तेरे जाने के बाद ये शराब का प्याला मुझे संभालता है !
मेरी हालत अब उस शीशे सी रह गई है फकत !
टूट भी जाऊँ सौ टुकड़ो में मगर ,
हर टुकड़ा तेरे अक्स को खुद का गवाह मानता है !

‪#‎आदित्य_प्रताप_सिंह 'अनु'


हजारो टूटते हुए दिलो का गवाह हूँ ,
तभी तो लिखने को इतना बेतरतीब और मुहब्बत से बेपरवाह हूँ ।