हिंदी शायरियों और कविताओं का संगम ! स्वरचित कविताएँ !
लोग अपने भी अनजान से हो गये हम तो घर में ही मेहमान से हो गये
रोज़ ऊपर से नीचे इधर से उधर एक बेकार सामान से हो गये
उम्र भर जिनको तकलीफ होने ना दी वो भी हमसे परेशान से हो गये
तेज़ रफ़्तार से हम नहीं चल सके अब कदम अपने बेजान से हो गये
No comments:
Post a Comment