फ़िक्र
तुझे ही मेरी
फ़िक्र न है
वरना ,
वो देख !,
सारा शहर मोहब्बत
को मुझसे और
मुझको महब्बत से जानता
है !
तू खुद नाप
ले मेरी मुहब्बत
का पैमाना !
मेरे शहर के
हर मयखाने का
प्याला ,
तेरा नाम जानता
है !
अब तो मेरी
रूह भी वाकिफ
है तेरी वफाई
से ,
पर ये दिल
मेरे अंदर होके
भी मेरी बात
न मानता है
!
मैं भी चाहता
हूँ तुझे भुला
दू तेरी ही
तरह !
पर क्या करूँ
,
कुछ इस कदर
बस गयी है
तू मुझमे ,
की मेरा रोम
रोम मुझे अब
तुझसे पहचानता है
!
सिर्फ एक तू
ही है जिसे
मेरा प्यार न
दिखा
वरना सारा शहर
मुझे तेरे आशिक़
के नाम से
जानता है !
तेरे सिवा मेरे
पास कुछ न
था खोने को
,
पर तेरे जाने
के बाद ये
शराब का प्याला
मुझे संभालता है
!
मेरी हालत अब
उस शीशे सी
रह गई है
फकत !
टूट भी जाऊँ
सौ टुकड़ो में
मगर ,
हर टुकड़ा तेरे अक्स
को खुद का
गवाह मानता है
!
#आदित्य_प्रताप_सिंह 'अनु'