Wednesday, 10 February 2016

मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?

मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?

जो घोर तम है मेरे मन में ,
आश ऐसी क्यों जगाऊँ
मिटटी के दिए जलाकर ,
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?
झूठी मुस्कान से परेशां
इस दिल को कब तक मैं बहलाऊँ !!
कोरी खुशियों को दिखाकर ,
'खुश हूँ मैं' ये क्यों दिखाऊं ?
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?
अरमान मेरे वो जलाकर
कर रही घर रोशन अपना
गैर-संग वो कितनी खुश है
कह दो तो ,
इस बात पर मुह-मीठा कराऊँ !!
पर मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?
अन्धकार -रंजित ह्रदय में,
तेरी पूजा अब भी क्यों है !!
मुझको तो नफरत है तुझसे ,
पर दिल को कैसे मैं मनाऊँ ..!
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?
तू तो मेरी है नहीं पर,
दिल को कैसे मैं बताऊँ
मेरा होके भी तेरा है !
तुझसे वापस कैसे लाऊँ !!
मेरे संग खुश-राज है ,
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?
झूठी खुशियाँ किसको दिखाऊं !
खुश हूँ मैं ये क्यूँ बताऊँ !!

‪#‎आदित्य_प्रताप_सिंह 'अनु'

Tuesday, 9 February 2016

अपने



खाई पाटने का काम दिया था जिनको ,
उनने ही इसमें और गहराइयाँ बना दी !!
जिन "पेड़ो" को काटकर पुल बना देते.
उनको ही काटकर क्यों आग लगा दी !!
थोड़ी सी कोशिश से भर जाते सारे जख्म !
पर ,इन लोगो ने तो अपनी 'औकात' दिखा दी !!
हमने जिनको दी मांझा संभालने की जिम्मेदारी ,
ये क्या ! उनने ही हमारी पतंग काट दी
मेरी मोहब्बत छिनने का कसूर सिर्फ मेरा नहीं ,
कुछ मेरे 'अपने' भी हैं ,जिनने खुशियाँ छाँट दी !!

‪#‎आदित्य_प्रताप_सिंह 'अनु'

तेरा संग

तेरा संग

तेरी मौजूदगी मेरे लिए सुकून का अहसास है ,
जब तू पास है तो लगता है,
दुनिया मेरे पास है !
तेरा संग कितना है लुभाता ,
कैसे करूँ बयान ये कितना प्यारा अहसास है !
अब दुनिया इसे 'इश्क़' कहे तो क्या फर्क पड़ता है ,
अब उन मूर्खो को कौन समझाए ..!
ये तो उससे भी ख़ास है !!
जब तू होती है पास तो ख़ुशी सी मिलती है ..
तुझे पास आता देख मुस्कान खिलती है !!
भूल जाता हूँ सरे ग़मों को ..
जब तू हाथ में हाथ रखकर शांत रहने को कहती है !!
तेरा शान्त्वना भरा एक शब्द मेरे लिए काफी है ..
सदा तेरे पास मेरी हर गलती की माफ़ी है !!
पर जब तू दुखी होती है ..
मेरे सामने सन्नाटा सा जाता है
उन लम्हों को याद करके मेरा दिल आज भी सूख जाता है !
उन नैन अश्क़ो का निकलना भरी लग जाता है ,
समय आता है ....
जाता है..
पर दिल उन पलों को नहीं भूल पाता है !!
तेरे खिलाफ निकले एक एक शब्द का जवाब है मेरे पास
पर सिर्फ तुझसे किये वादों के चलते ये शक्श रुक जाता है !!
आज भी चाह लूँ ,
उन सबको ला दूँ तेरे कदमो के पास !
मत भूल...
आज भी मेरे समाने सारा समंदर सूख जाता है !
तुझे भी पाता है सेखियों की आदत नहीं है मुझे
पर लोगो की आदत से मेरा दिल भी घबराता है ..!
तू कहती है ध्यान मत दो,
पर ध्यान देकर उनका ध्यान और खिंच जाता है !!
तेरे लिए अकूत इज्जत है मेरे दिल में ...
इसलिए आज भी आशिक़ मिजाज तेरे सामने आने से कतराता है !
पता नहीं क्या रिश्ता था पिछले जन्म ,
जो मेरा दिल तुझे अपने इतना करीब पाता है
कोई रहे तेरे साथ रहे क्या पाता ,
पर अपनी दोस्ती की कसम ..
दूंगा हमेसा साथ ये वादा है !!
तू ठहरे मेरे संग कब तक पता नहीं ,
पर ये दोस्ती ठहरेगी सदा ये इरादा है !!
कभी दिल दुखाने का एक वादा है ,
क्यूंकि तेरा साथ मेरे लिए सबकुछ से ज्यादा है !!

‪#‎आदित्य_प्रताप_सिंह 'अनु'

Sunday, 7 February 2016

खो गया हूँ..!

खो गया हूँ..!
खुद का पता नहीं हैं
खुद में जो खो गया हूँ..!
तेरी बेरुखी से परेसां
जागे जागे सो गया हूँ।।
एक पैर कब्र पर है
एक तन्हाईयाँ है पकडे..!
या जी लूं इन्ही के संग मैं
या समझूँ की मर गया हूँ।।
सोचा था सारे लम्हे
बीतेंगे तेरे संग ही..!
बस इक पहर ही गया था
कोरा कागज जो हो गया हूँ।।
क्यों याद रहे हैं
'वो लम्हे' जो थे बीते!
जो टूट कर था चाहा
देख..अब तक मैं रिस रहा हूँ।।
जो बेतरतीबी थी मेरे दिल में,
तेरे लिए अये जानम..!
वो बेचैनी बन चुकी है
और मैं घुट घुट के जी रहा हूँ..!

आदित्य प्रताप सिंह।।

Saturday, 6 February 2016

#‎दिन_का_ये_आखिरी_पहर‬

दिन का ये आखिरी पहर ..
ये ढलता सूरज..
हमारे अफ़साने की तरह ये उदास शाम ..!
क्यूँ चाहकर भी जर्रे जर्रे में ढूंढ रही हूँ तुझे !
ख्वाहिशों का टूटता आशियाना ..
वो शोर करते हुए घर लौटते खग ..
वो बिलकुल तुम्हारी तरह मुस्काता चाँद !
देख अब भी तेरी वापसी का दीप जला रही हूँ जो हर पल बुझे !!
मुहब्बत का सहरा है मानती हूँ मगर
बिन रुके पार कर ..सारे दर्द दरकिनार कर ..
एक क्षण के लिए ही सही....
फिर से चाहती हूँ तुझे 😣
बिन बारिश इन आँखों का बहता काज़ल ..
मेरे गालों पर लिख रहे तेरा नाम ..
क्यूँ तू इस कदर मुझमे बसा है
पल पल अहसास दिलाना चाहता है मुझे !
हाँ..दिन का ये आखिरी पहर ..
ये बेचैनी-बेतरतीबी भरी ढलती एक और शाम ..
मैं रोज की तरह आज फिर लेकर तेरा नाम
'जा आजाद किया' कहकर खुद से मिटाने की कोशिश करेंगे तुझे













# आदित्य प्रताप सिंह ‘अनु’ 

"सबकुछ" मेरा बन गए हो जब !

सुनो जरा ,
कहीं मत जाना अब !
यूँ अकेला छोड़ के,ये प्यारा रिश्ता तोड़ के !
जी पाउँगा मैं !             
तुम मेरी आदत हो अब !
पल -पल की इबादत हो अब !
बिन तेरे जो लम्बी थी रातें ,
तन्हाई में कटती थी काटे !
देख कैसे घट गयी है अब !
यूँ मेरे संग हाँ है तू जब !
अभी तक तो सिर्फ प्यार थे ,,
पर अब जिंदगी का सार हो !
मेरे तड़पते दिल की बहार हो !
बस कहीं मत जाना अब !
"सबकुछ" मेरा बन गए हो जब !














‪#‎आदित्य_प्रताप_सिंह 'अनु'

Thursday, 4 February 2016


#जिद न करो ।।
यूँ जहन्नुम तलक-ज़ीस्त उलझी पड़ी है ,
अब हसीं पल के इंतजाम की ज़िद न करो ।
जानता हूँ , तुझ बिन मसर्रत नहीं हैं घड़ियाँ ,
पर फिर से वो शाम लाने की जिद न करो ।।
न करो इबादतों का दौर फिर से शुरू,
फिर से अपना सबकुछ हार जाने की जिद न करो।
इसी सिलसिले में हुए हैं बर्बाद इस क़दर ,
बेहिसाब गहरा दरिया पार करने की जिद न करो ।।
मुहब्बत भी शब्-ए-तीरगी है सनम ,
इस तमी में ज़िया लाने की जिद न करो ।
इश्क़ तो अब भी बेहिसाब है तुमसे,
पर फिर से मीठे ज़रर की जिद न करो।।
ये ज़माना बड़ा जाबित है निर्ज़-जमीं की तरह ,
अब बे-तासीर मुहब्बत-ए-बरसात की जिद न करो ।
यूँ बिखरकर खुद को समेटना , मोजज़ा तो नही ,
चलो तो, सब्रोकरार की जिद न करो ।।
तेरे तबस्सुम से गुलशन हुआ करता था घराना,
फ़क़त दर्द में मुस्काने की जिद न करो ।
जला दिए हैं हमने ख़त जो तेरे इस्बात थे ,
उस ख़ाक को भी समेटने की ज़िद न करो ।।
मानो सनम,
उस उलझी शाम को पाने की जिद न करो ,
जो न है आश्ना, उसे फिर से लाने की जिद न करो ।
इश्क़ के समंदर में यूँ तूफ़ाँ बहुत आते हैं,
उसके साहिल पे मकां बनाने की ज़िद न करो ।।
**
जीस्त-जिंदगी । मसर्रत-खुश ।
शब्-ए-तीरगी-अँधेरी रात ।
ज़िया-उजाला ।
ज़रर-घाव । जाबित -कठोर ।
निर्ज़-बंजर । बे-तासीर-व्यर्थ ।
मोजज़ा-जादू । तबस्सुम-मुस्काना ।

इस्बात-प्रमाण,तथ्य ।आश्ना-अपना ।