मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?
जो घोर तम
है मेरे मन
में ,
आश ऐसी क्यों
जगाऊँ
मिटटी के दिए
जलाकर ,
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ
?
झूठी मुस्कान से परेशां
इस दिल को
कब तक मैं
बहलाऊँ !!
कोरी खुशियों को दिखाकर
,
'खुश हूँ मैं'
ये क्यों दिखाऊं
?
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ
?
अरमान मेरे वो
जलाकर
कर रही घर
रोशन अपना
गैर-संग वो
कितनी खुश है
कह दो तो
,
इस बात पर
मुह-मीठा कराऊँ
!!
पर मैं दिवाली
क्यों मनाऊँ ?
अन्धकार -रंजित ह्रदय में,
तेरी पूजा अब
भी क्यों है
!!
मुझको तो नफरत
है तुझसे ,
पर दिल को
कैसे मैं मनाऊँ
..!
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ
?
तू तो मेरी
है नहीं पर,
दिल को कैसे
मैं बताऊँ
मेरा होके भी
तेरा है !
तुझसे वापस कैसे
लाऊँ !!
मेरे संग खुश-राज न
है ,
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ
?
झूठी खुशियाँ किसको दिखाऊं
!
खुश हूँ मैं
ये क्यूँ बताऊँ
!!
#आदित्य_प्रताप_सिंह 'अनु'