# दिल्लगी ! (मेरी पहली कविता)
तू इस कदर मुझे करीब लगता है
तुझे अलग से सोचूं तो बड़ा अजीब लगता है
जिसे न दिल्लगी से मतलब न इश्क से सरोकार है
वो शख्स मुझे बहुत अजीब लगता है !
अपनी सीमाओं से निकलकर देख जरा
न कोई गैर ,न कोई अजनबी लगता है !
ये दोस्ती , ये मेलजोल ,ये चाहतें ,ये दिल्लगी
कभी कभी मुझे सब कुछ अजीब लगता है !
आकाश में दूर चमकता हुआ कोई तारा ,
मुझे दोस्त -ए -नगरी का नूर लगता है!
न जाने कब कोई तूफ़ान आएगा यारों। …….
ऊँची मौज से किनारा करीब लगता है !
-आदित्य प्रताप सिंह "सहज"
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