Saturday, 21 September 2013

# दिल्लगी ! (मेरी पहली कविता)



तू इस कदर मुझे करीब लगता है
तुझे अलग से सोचूं तो बड़ा अजीब लगता है 
जिसे न दिल्लगी से मतलब न इश्क से सरोकार है 
वो शख्स मुझे बहुत अजीब लगता है !


अपनी सीमाओं से निकलकर देख जरा 
न कोई गैर ,न कोई अजनबी लगता है !
ये दोस्ती , ये मेलजोल ,ये चाहतें ,ये दिल्लगी 
कभी कभी मुझे सब कुछ अजीब लगता है !

आकाश में दूर चमकता हुआ कोई तारा ,
मुझे दोस्त -ए -नगरी का नूर लगता है!

न जाने कब कोई तूफ़ान आएगा यारों। ……. 
ऊँची मौज से किनारा करीब लगता है !

-आदित्य प्रताप सिंह "सहज"

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